Wednesday 26 January 2022

संस्थान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का केंद्रीय पुस्तकालय में पदार्पण


दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण केंद्र का किया अवलोकन

लाडनूँ, 26 जनवरी, 2022।संस्थान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने संस्थान के केंद्रीय पुस्तकालय "वर्धमान ग्रंथ‌‌ागार" का भ्रमण किया। इस दौरान संस्थान के माननीय कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अनुशास्ता को केंद्रीय पुस्तकालय की वर्तमान गतिविधियों से अवगत करवाते हुए बताया कि पुस्तकालय की लगभग सभी गतिविधियों को तकनीक के सहयोग से स्वचालित किया जा रहा है एवं पुस्तकालय में विद्यमान जैन एवं जैनेतर सम्प्रदाय की लगभग छह हजार से अधिक पांडुलिपियों के वृहद् भण्डार को दीर्घकाल के लिए सुरक्षित एवं संरक्षित करने हेतु भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के आर्थिक सहयोग से पांडुलिपि संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई है। संस्थान में पांडुलिपि संरक्षण केंद्र का संचालन विगत तीन वर्षों से हो रहा है। केंद्र के माध्यम से भारतीय प्राचीन लिपियों में हस्तलिखित साहित्य का संरक्षण किया जा रहा है। जो हस्तप्रद 100 वर्ष से ज्यादा प्राचीन है तथा हस्तनिर्मित कागज पर लिखित हैं वे सभी पांडुलिपि कहलाती हैं। इन पांडुलिपियों में जैन आगम, संस्कृति, पुराण, ज्योतिष, व्याकरण, दर्शन, आचार तथा आयुर्वेद विषयक ज्ञान का भंडार है।

आचार्य श्री ने चरणबद्ध तरीके से पांडुलिपियों के संरक्षण की विधि को देखा तथा केंद्र द्वारा किये जा रहे इस महत्त्वपूर्ण कार्य की सराहना भी की। केंद्र में कार्यरत सुश्री सुरभि जैन ने प्रायोगिक विधि द्वारा संरक्षण कार्य को दिखाया तथा डॉ योगेश कुमार जैन ने जीर्ण अथवा टूटने वाले पत्रों के संरक्षण के साथ जिनकी स्याही निकल रही है अथवा फैल रही है, ऐसे हस्तप्रद के संरक्षण की आधुनिक विधि की जानकारी आचार्य श्री को दी।प्राचीन काल में संरक्षण हेतु हल्दी, लोंग, सूखे नीम के पत्ते एवं कपूर की गोली की पोटली बनाकर हस्तप्रद के साथ रखा जाता था परंतु अब आधुनिक तरीके में इनके स्थान पर हस्तप्रद की उम्र बढ़ाने हेतु, विविध केमिकल, पारदर्शी पेपर, हस्तनिर्मित कागज़, हार्डबोर्ड एवं कॉटन का लाल कपड़ा उपयोग में लिया जाता है। संरक्षित पाण्डुलिपियों का सम्पूर्ण विवरण कंप्यूटर के माध्यम से सुरक्षित किया जा रहा है जिससे पाण्डुलिपियों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं को सम्पूर्ण जानकारी सहज मिल सके।

ज्ञात हो कि इस केंद्र में लिपिबद्ध एवं चित्रित पांडुलिपि का संरक्षण कार्य किया जा रहा है, अतः केंद्र द्वारा चौबीस तीर्थंकर के जीवन दर्शन पर आधारित 31 फुट लंबे कागज़ के चित्रित पट का संरक्षण भी किया है जो कि लगभग फट गया था तथा जिसका कागज़ गल गया था। इस चित्रित पट को पुनः सुरक्षित देख आचार्यश्री ने प्रसन्नता व्यक्त की तथा कार्य की सराहना के साथ ही केंद्र के दिशानिर्देशक संस्थान के कुलपति प्रो. दुगड़ जी को अपना आशीर्वाद भी प्रदान दिया।

पुस्तकालय कर्मचारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ ग्रंथों एवं पुस्तकों के संग्रह को भी प्रदर्शित किया गया। आचार्यश्री ने सभी गतिविधियों का सूक्ष्मता से अवलोकन किया। आचार्यश्री के भ्रमण के दौरान मुख्य मुनि मुनिश्री महावीर कुमार जी, संस्थान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री कुमार श्रमणजी, मुनि कीर्ति कुमार जी एवं मुनि विश्रुत कुमार जी, श्री धरमचंद जी लुंकड़, श्री जीवनमलजी मालू,,प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. बनवारीलाल जैन आदि उपस्थित रहे



Tuesday 25 January 2022

अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में जैन विश्वभारती संस्थान में मनाया गया गणतंत्र दिवस समारोह



 पुरुष, पुस्तक एवं पंथ से प्रतिष्ठित है भारत भूमि - अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण

26 जनवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान में 73वां गणतंत्र दिवस समारोह अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में मनाया गया। इस अवसर पर आचार्यश्री ने उद्बोधन देते हुए यह बतलाया कि भारत लोकतंत्र का सबसे विशाल देश है। लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में जनता-जनार्दन का अत्यधिक महत्त्व है। यह भारत भूमि पुरुष, पुस्तक एवं पंथ से प्रतिष्ठित है, जिसके कारण इस भारत भूिम का वैशिष्ट्य विश्व में आदर के साथ स्वीकार किया जाता है। यहां का पुरुष अथवा युवा, जो अपने पुरुषार्थ के बल पर अनेक क्षेत्रों को समृद्ध किये हुए है, यहां के युवाओं का वैश्विक अवदान भी दृष्टिगोचर होता है। विभिन्न परम्पराओं की पुस्तकें, जो इस भारतभूमि को विभिन्न ज्ञान-विज्ञानों से समृद्ध किये हुए है, उनमें जैनागमों, बौद्ध त्रिपिटकों एवं वैदिक उपनिषद, भगवद् गीता आदि यहां के पुरुषों के लिए मार्गदर्शक के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें निहित ज्ञान-निधि को पथ-प्रदर्शक के रूप में भी देखा जा सकता है। इस भारतभूमि में निहित विभिन्न परम्पराओं के पंथ के अवदान भी महत्त्वपूर्ण हैं। अनुशास्ता ने आगे यह भी कहा कि आजादी का मतलब स्वतंत्रता है, न कि स्वच्छन्दता। इस अन्तर को आचार्यश्री ने सड़क पर लेटे हुए एक व्यक्ति द्वारा किये जा रहे स्वतंत्रता-उद्घोष का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया। उन्होंने यह भी बताया कि देश के प्रत्येक नागरिक को आत्मानुशासित होकर अपने कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिए। देश का प्रत्येक व्यक्ति अगर अपने कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व के प्रति जागरुक रहेगा तो इस भारतभूमि में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था जन्म नहीं ले सकती। अंत में आचार्यश्री ने संस्थान में हो रहे विकास के प्रति संतोष व्यक्त किया। इस अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने यह बताया कि आज का दिन उन क्रान्तिकारियों को याद करने का दिन है, जिन्होंने अपने त्याग एवं बलिदान से इस देश को आजाद करवाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्हें भी याद करने का दिन है, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में सुशासन स्थापित करने के लिए लम्बे प्रयासों के बाद संविधान के रूप में व्यवस्थाओं का एक ऐसा दस्तावेज प्रस्तुत किया, जिस पर चलते हुए भारत विविध क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रहा है। यह वो देश है, जिसमें 60 प्रतिशत युवा अपने महत्त्वपूर्ण योगदानों से न केवल देश को बल्कि विश्व को भी प्रतिष्ठित कर रहे हैं। अनुशास्ता का आज का आगमन हमें अक्षय-ऊर्जा प्रदान कर रहा है, जिससे हम संस्थान के विकास में चार चांद लगा सकते हैं।


समारोह में मुख्य अतिथि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा के अध्यक्ष सुरेश चंद गोयल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सही मायने में स्वराज का दिन तो आज है। 15 अगस्त को तो हम आजाद हुए थे किन्तु अपना संविधान प्रस्तुत करके आज के दिन स्वराज को प्राप्त किया।


कार्यक्रम के प्रारम्भ में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने ध्वजारोहण किया। राष्ट्रगान के बाद एनसीसी की छात्राओं ने तिरंगे झण्डे को सलामी दी। इस अवसर पर संस्थान के विकास में विशेष योगदान देने वाले श्री रमेशजी गोयल एवं पुखराजजी बडोला का उत्तरीय एवं संस्थान का प्रतीक चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया।


कार्यक्रम में एनसीसी की छात्राओं को रैंक भी प्रदान की। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. युवजराजसिंह खंगारोत ने किया। इस अवसर पर जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धरमचंद लूंकड़ एवं रमेश कुमार बोहरा, जैन विश्व भारती के मंत्री प्रमोद बैद, मुख्य ट्रस्टी अमरचंद लूंकड़, मूलचंद नाहर, पुखराज बडोला, केवलचन्द माण्डोत, संस्थान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री कुमार श्रमण, मुनिश्री कीर्तिकुमार, मुनिश्री विश्रुत कुमार, प्रो. नलिन के. शास्त्री, प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी, प्रो. बी.एल. जैन, कुलसचिव रमेश कुमार मेहता आदि उपस्थित थे।



जैन विश्वभारती संस्थान में मनाया गया राष्ट्रीय मतदाता दिवस


 लाडनूँ, 25 जनवरी 2022। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के प्राप्त निर्देशानुसार कुलपति प्रो.बच्छराज दुग्गङ के निर्देशन तथा मार्गदर्शन में आयोजित हो रहे आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम की कड़ी के अंतर्गत 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया गया। सर्वप्रथम कार्यक्रम के संयोजक डॉ. बलबीर सिंह ने राष्ट्रीय मतदान दिवस मनाए जाने के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए और भारत में राष्ट्रीय मतदान दिवस मनाए जाने के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक तथा आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने बोलते हुए बतलाया कि मतदान की शक्ति सशक्त लोकतंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण आधार होती है, अतः प्रत्येक मतदाता निडर और निष्पक्ष भाव से मतदान करें तो सशक्त लोकतंत्र स्थापित हो सकता है। इस प्रत्येक मतदाता का कर्तव्य है कि वह जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र आदि से ऊपर उठकर सशक्त कर्मठ एवं योग्य उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करें। अंत में सहायक आचार्य अभिषेक चारण ने आभार ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में 50 के करीब विद्यार्थी उपस्थित रहे।

Friday 21 January 2022

अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा जैन विश्वभारती संस्थान के ‘‘आचार्यश्री महाप्रज्ञ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ऑफ नेचुरापैथी एंड योग’’ का अवलोकन

 


लाडनूँ, 22 जनवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा संस्थान के नवीन प्रकल्प ‘‘आचार्यश्री महाप्रज्ञ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ऑफ नेचुरापैथी एंड योग’’ के नवनिर्मित भवन का अवलोकन किया गया। इस अवसर पर संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने आचार्यश्री को प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज की सम्पूर्ण परियोजना से परिचित करवाया और अवगत करवाया कि इस मेडिकल कॉलेज में पचास बेड के एक अस्पताल की सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। चिकित्सकीय उपचार की गुणवत्ता को सुनिश्चित किये जाने के क्रम में भारत के सर्वोत्तम प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान जे.एन.आई. बेंगलुरु के अकादमिक सहयोग का भी उन्होंने उल्लेख किया। जीवन विज्ञान एवं योग विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत ने प्रस्तावित महाविद्यालय की सम्पूर्ण रूपरेखा का विवरण आचार्यश्री के सम्मुख नक्शों के माध्यम से प्रस्तुत किया। इस अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने संबोधन में इंगित किया कि प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी अनूठी प्रणाली है, जिसमें जीवन के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक तलों के रचनात्मक सिद्धान्तों के साथ व्यक्ति के सद्भाव का निर्माण होता है। इसमें स्वास्थ्य के प्रोत्साहन, रोग निवारक और उपचारात्मक प्रबन्धन के साथ-साथ शरीर को फिर से मज़बूती प्रदान करने की भी संभावनाएं सन्निहित हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ प्राकृतिक चिकित्सा उपचार को एक ऐसी प्रणाली के रूप में लक्षित करते थे, जो शरीर के भीतर महत्त्वपूर्ण उपचारात्मक शक्ति के सम्यक् उपयोग को भाव चेतना के साथ जोड़कर आरोग्य प्रदान करती है।

मुनिश्री कीर्ति कुमार ने अपने वक्तव्य में इस प्रकल्प के विकास के प्रारम्भिक चरण का स्मरण करते हुए विशाखापटनम में सम्पन्न हुई चर्चा को रेखांकित किया और बताया कि किस प्रकार रुचिपूर्वक प्रसिद्ध समाजसेवी एवं भामाशाह नोखा निवासी एवं कोलकाता प्रवासी कमलकिशोर ललवानी एवं लाडनूं निवासी तथा कोलकाता प्रवासी पदमचंद भुतोड़िया ने इस परियोजना में सहयोग देने का भाव व्यक्त किया। संस्थान के आध्यात्मिक-पर्यवेक्षक मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने भी इस अवसर पर संबोधित किया एवं इस क्षेत्र की अन्य संभावनाओं एवं संस्थान द्वारा भविष्य में इस दिशा में बढ़ाए जाने वाले कदमों एवं योजनाओं के बारे में बताया।

इस अवसर पर नैचुरोपैथी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के भवन-निर्माण दानदाताओं कमलकिशोर लालवानी और पूनमचन्दजी भुतोड़िया के परिवारजनों का सम्मान किया गया। समारोह का संचालन जीवन विज्ञान एवं योग विभाग के सह-आचार्य डॉ. युवराजसिंह खंगारोत ने किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी के बहुआयामी कर्तृत्व पर आधारित पुस्तक का विमोचन


लाडनूँ, 22 जनवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के कर्तृत्व पर आधारित प्रकाशित नवीन पुस्तक ‘‘आचार्य महाश्रमणः विविध आयामी अवदान’’ का विमोचन आचर्यश्री की पावन सन्निधि में किया गया। इस पुस्तक में देशभर के 22 मूर्धन्य विद्वानों के आलेखों का समावेश किया गया है। पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़, पुस्तक के संपादक प्रो. दामोदर शास्त्री, जैन विश्वभारती के अध्यक्ष मनोज लूणिया, पूर्व अध्यक्ष धरमचन्द लूंकड़, अरविंद संचेती, अमरचंद लूंकड़, वित्त समिति सदस्य प्रमोद बैद, केवलचंद माण्डोत, प्रो. नलीन के. शास्त्री आदि उपस्थित रहे। संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुरुदेव के बहुआयामी अवदानों के शब्दांकन का अत्यन्त लघु प्रयास इस कृति के माध्यम से संस्थान ने किया है, जिसे पूज्यवर को अर्पित किया जा रहा है। इस अवसर पर समाजशास्त्र के विद्वान् प्रो. रामप्रकाश द्विवेदी ने आचार्यश्री के अवदानों के विस्तृत फलक पर प्रकाश डालते हुए पूज्यवर के सम्मुख निवेदन किया कि जिस प्रकार मदनमोहन मालवीय के संकल्पों से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आविर्भूत हुआ है, उसी प्रकार जैन विश्वभारती संस्थान तेरापंथ के महान आचार्य गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी की प्रेरणा से संस्थापित हुआ है और इसके विकास में आचार्यश्री महाप्रज्ञ के संप्रेरण को आचार्यश्री महाश्रमणजी की प्रेरणा ने अद्भुत विस्तार दिया है, जिसकी फलश्रुत प्रणीति है कि संस्थान को हाल ही में नैक द्वारा ‘ए’ ग्रेड प्राप्त हुआ है एवं मूल्यनिष्ठ शिक्षा के सर्वोच्च केन्द्र के रूप में यह विश्वविद्यालय आगामी कालखंड में सम्पूर्ण देश को दिशाबोध दे सकने में समर्थ हो सकेगा। पूज्य आचार्यश्री ने अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए फरमाया कि विश्वविद्यालय ने कुलपति प्रो. दूगड़ के नेतृत्व में अच्छी प्रगति की है और विकास की गति को निरंतर गतिशील रखने की आशा है। विश्वविद्यालय प्राच्य विद्या और विशेष रूप से जैन विद्या के विकास में वैश्विक स्तर पर अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह करे तथा इनके विस्तार में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करे, ऐसी अपेक्षा है।

Thursday 20 January 2022

अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण का जैन विश्वभारती संस्थान में पदार्पण

 


संस्कारयुक्त शिक्षा सार्थक है-आचार्यश्री महाश्रमण

लाडनूँ, 20 जनवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण एक लम्बे अन्तराल के बाद कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के निवेदन पर संस्थान में पधारे। सर्वप्रथम एन.सी.सी. की छात्राओं ने गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया। इसके पश्चात् अनुशास्ता का आगमन जैन विश्वभारती संस्थान के महिला उच्च शिक्षा केन्द्र, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में हुआ। इस महाविद्यालय के स्मार्ट क्लासरूम, मेडिकल रूम, रोजगार परामर्श केन्द्र, प्रार्थना प्रशाल, प्रेक्षाध्यान-कक्ष, प्राचार्य-कक्ष एवं कार्यालय आदि का अवलोकन करने के साथ-साथ, जोधपुर के सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रो. के.एन. व्यास के लाईव व्याख्यान का अवलोकन भी किया। ध्यातव्य है कि जैन विश्वभारती संस्थान में इस तरह के अनेक स्मार्ट क्लास रूप हैं, जिनमें सुदूर स्थित आचार्यों के व्याख्यान का लाईव प्रसारण नियमित रूप से होता है। संस्थान में इस तरह के 26 स्मार्ट क्लास रूम हैं, जिसमें छः आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में अवस्थित हैं। इसके प्रश्चात्, आन्तरिक गुणवत्ता मूल्यांकन प्रकोष्ठ का अवलोकन पूज्य प्रवर ने किया एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षण तथा प्रबंधन हेत किये जाने वाले कार्यों की जानकारी संप्राप्त की। संस्थान के शिक्षा विभाग में बी.एड., एम.एड के साथ-साथ बी.ए.-बी.एड. एवं बी.एस.सी.-बी.एड़. का पाठ्यक्रम के संचालन की जानकारी भी उन्होंने रूचि पूर्वक ली। ध्यातव्य है कि इस विभाग द्वारा भविष्य की ऐसी अध्यापिकाएं तैयार की जाती है, जिनमें भारतीय संस्कृति के मूल्य प्रतिष्ठित रहते हैं। इस विभाग के विभागाध्यक्ष-कक्ष, स्टॉफ-कक्ष, जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान एवं मनोविज्ञान आदि प्रयोगशालाओं का गुरूदेव ने सूक्ष्मता से अवलोकन किया और इसमें कराये जाने वाले प्रयोगों के प्रोटोकोल से भी अवगत हुए। इसके पश्चात् आई.सी.टी. कक्ष में छात्राध्यापिकाओं को एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की छात्राओं को सम्बोधित करते हुए अनुशास्ता ने कहा कि यूं तो शिक्षा महत्वपूर्ण है किन्तु संस्कारयुक्त शिक्षा अत्यधिक फलदायी है। शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का होना अत्यावश्यक है। यहां पर छात्राध्यापिकाओं द्वारा अनुपयोगी सामग्री के उपयोगी सामग्री के रूप में परिवर्तित किये जाने वाले सृजनात्मक कार्यों को देखकर आचार्यश्री ने अत्यन्त प्रसन्नता व्यक्त की। संस्थान की शारीरिक व्यायामशाला (जिम) का भी उन्होंने अवलोकन किया। इसके पश्चात् आचार्यश्री का पदार्पण प्रशासनिक खण्ड में हुआ, जहां उन्होंने संस्थापन शाखा, उपकुलसचिव कार्यालय, कुलसचिव कार्यालय, वित्ताधिकारी कार्यालय, सहायक कुलसचिव कार्यालय पर दृष्टिपात करते हुए कुलपति कक्ष में पधारने की कृपा की, जहां कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ एवं कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल ने नयी शिक्षा नीति-2020 पर आधारित जैन विश्वभारती संस्थान की निर्मित की गयी योजना का दस्तावेज भेंट किया। यहां पर कुलपति को आशीर्वाद देते हुए अनुशास्ता ने कहा कि संस्थान के क्रियाकलापों एवं गतिविधियों में प्रामाणिकता सदैव बनी रहे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अनुपालना होती रहनी चाहिए। इसके पश्चात् संस्थान की कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल के कक्ष में पधार कर उन्हें आशीर्वाद दिया। तदुपरान्त संस्थान में स्थापित इलेक्ट्रोनिक मीडिया प्रोडक्शन सेन्टर में आचार्यप्रवर के वक्तव्य को रिकार्ड किया गया और सेन्टर में उपलब्ध नवीनतम तकनीकों से उन्हें अवगत कराया गया। इसके पश्चात् अनुशास्ता ने शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को अपना सम्बोधन दिया जिसमें उन्होंने बताया कि संस्थान के कर्मचारी सेवाभाव एवं निष्ठा से कार्य करते रहें, इससे संस्थान निरन्तर विकास की ओर अग्रसर होगा। इसके बाद दूरस्थ शिक्षा निदेशालय का गुरूदेव ने अवलोकन किया जिसमें प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रवेश सम्बन्धी, पाठ्यसामग्री सम्बन्धी, सत्रीय कार्य सम्बन्धी एवं परीक्षा सम्बन्धी कार्यों की जानकारी दी। संस्थान में स्थित अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालय का भी अवलोकन किया तथा इसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों से अनुशास्ता को अवगत कराया गया। इसके बाद आचार्यश्री ने अहिंसा एवं शांति विभाग में कोटा ऑपन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं सुप्रसिद्ध प्रोफेसर नरेश दाधीच के लाईव व्याख्यान का अवलोकन किया तथा उनके प्रणाम को स्वीकार किया। इसी विभाग में, विश्वविद्यालय के द्वारा अब तक हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तकों का भी उन्होंने अवलोकन किया। शोध विभाग में संस्थान के पी-एच.डी. शोधाथियों के शोध-प्रबन्ध का भी उन्होंने अवलोकन किया। ध्यातव्य है कि लगभग 400 शोधार्थियों को अब तक संस्थान से पी-एच.डी. डिग्री प्रदान की जा चुकी है। प्राकृत एवं संस्कृत विभाग, योग एवं जीवन विज्ञान विभाग का भी अनुशास्ता द्वारा अवलोकन किया गया। दोनों विभागों द्वारा संचालित होने वाली विभिन्न गतिविधियों से वे अवगत भी हुए। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में स्थित पेरीस्कोप, ई.ई.जी., ई.एम.जी., पोलेराईट, स्पाईरोमीटर, बायोकेमिस्ट्री, सी.बी.सी. आदि मशीनों तथा मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का भी उन्होंने अवलोकन किया। इसके पश्चात् शेक्षणिक प्रखण्ड में स्थित सेमीनार हॉल में सभी शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए पूज्य प्रवर अनुशास्ता ने कहा कि यूं तो आत्मोत्थ ज्ञान सर्वोत्कृष्ट है, इस ज्ञान की जितनी सम्भव हो, आराधना होनी चाहिए; किन्तु ऐन्द्रिय ज्ञान भी जरूरी है। यूं तो प्राध्यापक बनना कोई आसान नहीं है। बड़े परिश्रम के पश्चात् प्राध्यापक बनते हैं, फिर भी प्राध्यापकों को प्रतिदिन की कक्षा में पूर्ण स्वाध्याय के साथ जाना चाहिये ताकि विद्यार्थियों को व्यवस्थित ज्ञान दिया जा सके। अनुशास्ता ने यह भी बताया कि मेरे प्रतिनिधि के रूप में आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमार श्रमण संस्थान से निकटता के साथ जुड़े हुए हैं। आचार्यश्री ने संस्थान में कार्यरत समणियों की उपयोगिता का भी उल्लेख किया तथा कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की कार्यशैली से प्रभावित होकर उन्हें आशीर्वाद भी दिया। इसके पूर्व संस्थान की कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिन्दल ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने संस्थान में अब तक किये गये ऑनलाईन कक्षा, विडियो/ऑडियो का निर्माण, जैनविद्या के अल्पावधि पाठ्यक्रमों आदि रचनात्मक नवाचारों के विषय में प्रकाश डाला। इस अवसर पर आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री कुमार श्रमण ने संस्थान के विकास पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि संस्थान अपने उद्देश्यों के अनुरूप प्राच्यविद्याओं के विकास की दिशा में तत्पर होकर कार्य कर रहा है। इस अवसर पर मुख्य मुनि महावीर ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संयोजन विशेषाधिकारी कुलपति प्रो. नलिन शास्त्री ने किया। अन्त में आचार्यश्री के मंगलपाठ से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस पदार्पण कार्यक्रम में आचार्यश्री के साथ मुनिवृन्द, समणीवृन्द, जैन विश्वभारती संस्थान के सभी शिक्षक, शिक्षणेत्तर अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थियों के साथ-साथ मातृ संस्था जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मचन्द लूंकड़, श्री रमेश बोहरा एवं वर्तमान अध्यक्ष श्री मनोज लूनिया, मंत्री श्री प्रमोद बैद, संयुक्त मंत्री श्री जीवनमल मालू, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री शान्तिलाल बरमेचा एवं मंत्री श्री भागचन्द बरडिया आदि उपस्थित थे।