Friday 27 April 2018

आकर्षक सम्प्रेषण शिक्षण के साथ व्यावहारिक जीवन में भी उपयोगी

लाडनूँ, 27 अप्रेल 2018। मोदी यूनिवर्सिटी आफ साईंस एंड टेक्नोलोजी सीकर के सह आचार्य डाॅ. अशोक एस. राव ने पढाने के तरीकों को सहज बनाने एवं अध्यापक के लिए आवश्यक गुणों के विकास के बारे में यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए बताया; उन्होंने यहां सेमिनार हाॅल में विश्वविद्यालय के अंगे्रजी विभाग के तत्वावधान में आयोजित अंग्रेजी भाषा की सम्प्रेषण दक्षता को विकसित करने सम्बंधी कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अध्यापक को अपने विषय में गहरी जानकारी हासिल करने के लिए नियमित अध्ययन आवश्यक होता है। अध्यापक का विद्यार्थियों के सामने संतुलित व सहज व्यवहार, अनुशासन प्रियता, समय की प्रतिबद्धता आदि पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने सीखने-सिखाने के तरीकों को रोचक बनाने के उपाय बताऐ तथा कहा कि आकर्षक सम्प्रेषण से व्यावहारिक जीवन में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। उन्होंने इस अवसर पर अंग्रेजी भाषा में सम्प्रेषण दक्षता प्राप्त करने के सम्बंध में यहां विश्वविद्यालय के समस्त शैक्षणिक व मंत्रालयिक कर्मचारियों को अंग्रेजी भाषा की सरलता को रेखांकित करते हुए महत्वपूर्ण टिप्स भी बताये। कार्यशाला के प्रारम्भ में प्रो. रेखा तिवाड़ी ने डाॅ. राव का परिचय प्रस्तुत किया तथा अंत में विभागाध्यक्ष डाॅ. गोविन्द सारस्वत ने आभार ज्ञापित किया।

Friday 20 April 2018

जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन एवं अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विदाई समारोह का आयोजन

जीवन में पांच H का होना आवश्यक है - प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा

लाडनूँ, 20 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग एवं अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विदाई समारोह का आयोजन किया गया। जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने कहा कि जीवन में पांच H का होना आवश्यक है -
H = Healthy यानि शरीर, मन व भावानात्मक रूप से स्वस्थ रहें।
H = Happy यानि हर अनुकूलता या प्रतिकूलता में खुश रहे।
H = Humble यानि विनम्र रहें।
H = Honest यानि प्रामाणिक व नैतिक रहें ।
H = High Thinking यानि सोच हमेशा उंची रखें।
जो कुछ है वह सोच के कारण है और जो कुछ बनोगे वह सोच के कारण ही बनोगे। अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. गोविन्द सारस्वत ने जीवन के बदलाव में अपनी क्षमताओं को पहचानने की जरूरत पर बल दिया।
कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि कभी संवेदनाओं के स्रोत को सूखने नहीं दें, क्योंकि हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः की रही है। उन्होंने स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों के लिऐ मंगलभावना प्रकट करते हुये उन्हें जीवन में आदि शंकराचार्य के जीवन-दर्शन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता बताते हुये कहा कि उन्होंने मात्र 8 वर्ष की उम्र में वेद पढ लिऐ थे और 16 वर्ष की आयु में अपने समस्त ग्रंथों की रचना कर दी थी। उनकी आयु मात्र 32 वर्ष रही, लेकिन इसमें भी उन्होंने इतना कार्य किया कि पूरा विश्व उन्हें याद करता है।
प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि ज्ञान दिया नहीं जाता, बल्कि वो तो अंदर ही होता है, केवल उस पर से आवरण को हटाने की जरूरत होती है। उन्होंने अंग्रेजी भाषा के वाक्य-विन्यास को विलक्षण बताया तथा कहा कि भाषा के सौंदर्य को पढना चाहिये।
कार्यक्रम में उदय चैगले, माया, मुमुक्षु सोनम, कंचन शर्मा, विनय आदि ने अपने अनुभव, विचार एवं गीत प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का प्रारम्भ मंगलाचरण से किया गया। संचालन प्रासुक व प्रज्ञा शर्मा ने किया।

Wednesday 18 April 2018

आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में विदाई समारोह आयोजित

धैर्य के साथ प्रयास करने पर मिलती है सफलता- प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 18 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि जीवन में हमेशा धीरज रखना चाहिये। धैर्य खोने से नुकसान उठाना पड़ता है; असफलता आये तो हताश-निराश नहीं होना चाहिये। गुच्छे की आखिरी चाबी भी कई बार ताले को खोल देती है, उसी प्रकार कोई न कोई प्रयास सफलता अवश्य ही दिलवाता है। सदैव प्रयासरत रहना चाहिये और अच्छे बनने का प्रयास करना चाहिये। हर व्यक्ति को अच्छे आदमी की तलाश रहती है। हम भी बाहर अच्छे व्यक्ति को खोजते हैं, लेकिन हमें स्वयं अच्छा बनना चाहिये, ताकि हम किसी की खोज को पूरी कर पायें। स्वयं मिसाल बनें व दूसरों की तलाश को पूरा करें। वे यहां महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में आयोजित आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के मंगलभावना समारोह के रूप में आयोजित विदाई समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने इस अवसर पर छात्राओं को शुभकामनायें देते हुये कहा कि यहां उच्च महिला शिक्षा गुरूदेव तुलसी की देन है। यहां केवल डिग्रियों के लिये ही शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि यहां व्यक्तित्व को तराशने का काम किया जाता है। उन्होंने स्मार्ट क्लासेज, डिजीटल स्टुडियो, केरयिर काउंसलिंग, मार्शल आर्ट प्रशिक्षण, क्लबों द्वारा सहशैक्षणिक गतिविधियों में प्रतिभाओं को दक्ष बनाने आदि की जानकारी भी प्रदान की। अभिषेक चारण ने प्रारम्भ में महाविद्यालय के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी।
इस अवसर पर महाविद्यालय की विभिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठ रही छात्राओं, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के विजेता विद्यार्थियों तथा क्षेत्र के विद्यालयों के प्राचार्यों व प्रधानों का भी सम्मान किया। समारोह में कुलपति प्रो. दूगड़ व प्राचार्य प्रो. त्रिपाठी ने विशिष्ट अतिथियों के रूप में शामिल क्षेत्र के विभिन्न विद्यालयों के प्राचार्यों व निदेशकों का सम्मान किया गया, जिनमें लाड मनोहर बाल निकेतन की प्राचार्या कंचनलता शर्मा, सैनिक स्कूल के निदेशक केशाराम हुड्डा, राजकीय केशरदेवी सेठी बालिका विद्यालय की प्राचार्या अलका रानी गुहराय, सुभाष बोस सीनियर सैकेंडरी स्कूल के भंवर लाल मील, विमल विद्या विहार स्कूल की विनीता धर, मौलाना आजाद स्कूल के बहादुर खां मोयल, आदर्श विद्या मंदिर स्कूल के राजूराम पारीक, राजकीय भूतोड़िया बालिका स्कूल की डाॅ. नीता चैहान, संस्कार सीनियर सैकेंडरी स्कूल की डाॅ. सुमन चैधरी, राजकीय जौहरी स्कूल की प्राचार्या रमा देवी, दयानन्द स्कूल के हरेकृष्ण शर्मा, मदनलाल भवंरीदेवी आर्य मैमोरियल स्कूल की कंचनलता आर्य, सत्यम स्कूल के राजकुमार व बापूजी काॅलेज आफ नर्सिंग के ओमप्रकाश गुर्जर शामिल थे। कुलपति प्रो. दूगड़ ने इनके अलावा महाविद्यालय द्वारा आयोजित सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, जिनमें लक्ष्मी भाटी सुजानगढ को पहला पुरस्कार, ज्योति जांगिड़ सुजानगढ को द्वितीय पुरस्कार, दयानन्द स्कूल के नत्थूराम मौर्या को तृतीय पुरस्कार एवं मुरारी रांकावत निम्बी जोधां व मनोज रतावा निम्बी जोधां को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया। इनके अलावा महाविद्यालय की श्रेष्ठ छात्रा के रूप में ज्योति नागपुरिया को, बेहतरीन एकरिंग के लिये हेमलता शर्मा व दीपिका राजपुरोहित को, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अग्रणी रहने पर किरण बानो को, एनसीसी में उपलब्धि के लिये मानसी बुगालिया को सम्मानित किया गया।
समारोह में छात्राओं ने विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम का प्रारम्भ गणेश वंदना पर रश्मि व संध्या ने नृत्य के साथ किया गया। सरिता शर्मा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। गीता प्रजापत के ‘‘घूमर घूमर घूमै......’’ पर किये गये नृत्य को सभी ने सराहा। ज्योति नागपुरिया ने ‘यारा तेरी यारी को मैंने तो खुदा माना.....’ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में रचना सैनी व अन्य छात्राओं ने योगासनों एवं यौगिक क्रियाओं का शानदार प्रदर्शन किया। छात्राओं ने कठपुतली नृत्य प्रस्तुत करके लोगों को आकर्षित किया। कार्यक्रम में पलक एवं समूह, महिमा प्रजापत एवं समूह, पूजा, रश्मि, राजलक्ष्मी, प्रतिष्ठा कोठारी, पलक सैनी, प्रीति, किरण, प्रिया राजपुरोहित, दीपिका आदि ने भी अपने समूहों के साथ नृत्य एवं अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। इस अवसर पर अंतिम वर्ष की छात्राओं को द्वितीय वर्ष की छात्राओं द्वारा उपहार देकर विदाई दी गई। कार्यक्रम में प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, डाॅ. समणी मल्लिप्रज्ञा, प्रो. समणी संगीत प्रज्ञा, डाॅ. अमिता जैन, सानिका जैन, प्रगति भटनागर आदि उपस्थित थे।
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जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में भगवान परशुराम जयंती पर्व का आयोजन

लाडनूँ, 18 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में भगवान परशुराम जयंती पर्व मनाया गया। इस अवसर पर प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि भगवान परशुराम जो सोच लेते थे, उसे अपने पूरे प्राण-प्रण से करते थे। वे विष्णु के छठे अंश अवतार माने जाते हैं। अक्षय तृतीया के दिन उनकी जयंती देश भर में मनाई जाती है। परशुराम ने इस धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दिया था। अभिषेक चारण ने कहा कि भगवान परशुराम जमदग्नि महर्षि के पुत्र थे। एक राजा द्वारा उनके पिता जमदग्नि का वध कर दिये जाने से उन्होंने क्रुद्ध होंकर पृथ्वी को 21 बार दुष्ट राजाओं से मुक्त किया था। वे भगवान शिव के फरसे को धारण करते थे, जिससे उनका नाम परशुराम पड़ा था। कार्यक्रम में महाविद्यालय की छात्रायें व स्टाफ उपस्थित रहे।

Tuesday 17 April 2018

यूजीसी की 12बी टीम की रिपोर्ट पर बैठक आयोजित

जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में शुरू किये जायेंगे रोजगार-परक पाठ्यक्रम- प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 17 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि विश्वविद्यालय में शीघ्र ही नैचुरोपैथी व योग, आयुर्वेद पर कोर्सेज शुरू किये जायेंगे। इनके अलावा अब यहां विभिन्न प्रकार के रोजगार परक पाठ्यक्रम भी शुरू किये जायेंगे। इनमें स्थानीय उद्योगों की आवश्यकताओं को देखते हुये उनके अनुकूल स्किल डेवलेपमेंट कोर्स बनाये जायेंगे। यहां पर केरियर काउंसलिंग एवं प्लेसमेंट के कार्यक्रमों को अधिक सक्षम बनाया जायेगा ताकि उनका पूरा लाभ विद्यार्थियों को मिल सके। वे यहां यूजीसी की 12 बी की टीम द्वारा यूजीसी को दी गई रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुये उनके द्वारा दिये गये सुझावों को लागू करने के बारे में बता रहे थे। उन्होंने सम्पूर्ण शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक स्टाफ की बैठक में बताया कि सबकी सुविधा के लिये विश्वविद्यालय परिसर में शाॅपिंग सेंटर का निर्माण किया जायेगा। इसके लिये वर्तमान में तात्कालिक रूप में यहां चल रही केंटीन के अंदर समस्त खरीदारी की सुविधा उपलब्ध करवाई जायेगी। प्रो. दूगड़ ने बताया कि यह विश्वविद्यालय जैन दर्शन पर आधारित है। इसलिये यहां जैन दर्शन के सम्बंध में ऐसे कोर्स डेवलप किये जायेंगे, जों छात्रों को रोजगार भी उपलब्ध करवा सके। इन सभी को लागू करने के लिये उन्होंने समय-सीमा तय की तथा अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी।
उन्होंने बताया कि यूजीसी की 12 बी टीम द्वारा दी गई रिपोर्ट पूरी तरह से संस्थान के पक्ष में की गई सिफारिश के रूप में है, जिसमें उनके द्वारा किये गये अवलोकन में विश्वविद्यालय के भैतिक संसाधनों को श्रेष्ठ बताया है। परिसर को साफ-सुथरा व पर्यावरण के अनुकूल बताया। यहां के शैक्षणिक स्टाफ को अच्छा तथा विद्यार्थियों में हिंसा रहित व अनुशासित बताया गया है। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट में विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्थाओं को किसी वैधानिक संस्था की तरह संचालित की जाना तथा छात्रावास व स्टाफ के आवास की व्यवस्थाओं की भी रिपोर्ट में तारीफ की गई है। प्रो. दूगड़ ने जानकारी दी कि रिपोर्ट में इस डीम्ड विश्वविद्यालय को अपने उद्देश्यों के अनुकूल एवं जैन दर्शन को समर्पित जैन साहित्य, अनुवाद आदि पर फोकस बताया तथा प्राकृत भाषा व उसके डिजीटाईजेशन आदि पर भी संतोष व्यक्त किया गया। टीम ने महिला शिक्षा पर आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के माध्यम से अच्छा कार्य करना बताया गया है। कुलपति ने इसके लिये समस्त स्टाफ द्वारा की गई मेहनत को श्रेय देते हये कहा कि आने वाले समय में राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की टीम विश्वविद्यालय का दौरा करेगी, जिसमें भी सबको पूर्ववत ही अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना है। बैठक में प्रो. रेखा तिवाड़ी, प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. बीएल जैन, अभिषेक चारण आदि ने इस सफलता के लिये कुलपति के नेतृत्व की सराहना की तथा नेक की टीम के समक्ष भी इसी तरह से श्रेष्ठ प्रदर्शन की प्रतिबद्धता दोहराई। बैठक में प्रो. दामोदर शास्त्री, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, प्रो. समणी संगीत प्रज्ञा, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. रविन्द्र सिंह शेखावत, डाॅ. युवराज सिंह खांगारोत, डाॅ. अशोक भास्कर, डाॅ. विवेक माहेश्वरी, निरन्जन सांखला, दीपक माथुर, नुपूर जैन, सोनिका जैन, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, सुनीता इंदौरिया, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. समणी अमल प्रज्ञा, प्रगति भटनागर, डाॅ. जसबीरसिंह आदि उपस्थित थे।

Monday 16 April 2018

शोध-अध्येताओं के लिये कोर्स वर्क एंड रिसर्च मैथडोलोजी पर व्याख्यान का आयोजन

शोध में कट-पेस्ट को हटाकर स्तर सुधारने की जरूरत- प्रो. व्यास

लाडनूँ, 16 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में शोध-अध्येताओं के लिये कोर्स वर्क एंड रिसर्च मैथडोलोजी पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। संस्थान के शोध निदेशक प्रो. अनिल धर की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के समाज शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. के.एन. व्यास ने व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने शोध में पुनरावृति नहीं होने देने का जरूरी बताते हुये कहा कि रिसर्च में कट एंड पेस्ट की आदत भी ठीक नहीं है; प्लेगेरिज्म का होना एक अपराध है, इसलिये इससे बचना चाहिये तथा जो उद्धरण लिया जा रहा है, उसका रेफरेंस अवश्य उल्लेख करना चाहिये। प्रो. व्यास ने इस बात पर दुःख जताया कि देश में शोध का स्तर गिरता जा रहा है। पहले जो शोध की प्रतिष्ठा थी, वह अब नहीं रही। शोध के स्तर को उच्च बनाने के लिये उन्होंने शोधार्थियों के लिये पूर्व तैयारी को आवश्यक बताया। उन्होंने शोध का अर्थ बताते हुये कहा कि इसमें नये तथ्यों की खोज, पुराने तथ्यों का पुनर्परीक्षण और कार्य-कारण के अन्तर्सम्बंधों का पता लगाना समाहित है। शोध के लिये विषय की खोज में जरूरी है कि विषय नया, रूचिकर और उत्तरदाताओं से सीधा सम्बंधित हो। इसके बाद उपलब्ध सम्बंधित साहित्य का अध्ययन करना होता है, जिसके लिये पुस्तकालय, इंटरनेट एवं ई-लाईब्रेरी का सहयोग लिया जा सकता है। इसके बाद उपकल्पना का निर्धारण करना होता है। उन्होंने बताया कि उपकल्पना ऐसा दिशासूचक होती है, जो शोधकर्ता को दिशा देता है। इससे समय, धन व शक्ति का अपव्यय रूकता है। उपकल्पना को स्रोत व्यक्त्गित अनुभव, सामान्य संस्कृति, सादृश्यता एवं वैज्ञानिक सिद्धांत होते हैं। उपकल्पना उपलब्ध प्रविधियों, साधनों के अनुकूल हो, जिसमें टूल एंड टेक्नीक का उपयोग हो सके तथा वह वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुकूल भी हो। उन्होंने शोध तैयार करने की विधियों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। प्रारम्भ में प्रो. धर ने उनका स्वागत किया। इस अवसर पर डाॅ. रविन्द्र सिंह, डाॅ. जसबीर सिंह एवं शोधार्थी मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने किया।

Friday 13 April 2018

शिक्षा विभाग में अंबेडकर जयंती पर ‘सामाजिक समरसता’ कार्यक्रम आयोजित

बाबा साहेब का संपूर्ण कृतित्व अनुकरणीय- प्रो. जैन

लाडनूँ, 13 अप्रेल, 2018 डाॅ. अंबेडकर का संपूर्ण जीवन समाज, राष्ट्र तथा मानवीयता के लिए समर्पित रहा। उन्होंने दलितों के सामाजिक पुनरूत्थान, मानव सेवा तथा भारतीय लोकतंत्र की सफल स्थापना हेतु अपना महती योगदान दिया। डाॅ. अंबेडकर के जीवन एवं कृतित्व से हम सभी को प्रेरणा लेते हुए भारतीय समाज में व्याप्त विसंगतियों लैंगिक असमानता, छूआछूत, धार्मिक आधार पर भेदभाव आदि को दूर कर अखण्ड भारत के निर्माण का संकल्प लेना चाहिए। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के अन्तर्गत आयोजित अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। कार्यक्रम के प्रभारी डाॅ. गिरधारीलाल शर्मा ने भीमराव अंबेडकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में बताते हुए कहा कि बाबा साहेब ने जीवन पर्यंत बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय की दिशा में कार्य किया और भारतीय लोकतंत्र के विशाल संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई।
कार्यक्रम में मुख्यतः बी.एड. एवं बी.एस.सी. छात्राओं ने विचार व्यक्त किये और भीमराव अम्बेडकर के जीवन संबंधी मूल्यों, विद्यालय की घटनाओं तथा शैक्षिक जीवन के बारे में सभी श्रोताओं को अवगत करवाया। कार्यक्रम में अंबिका शर्मा ने एक कविता के माध्यम से डाॅ. अंबेडकर का संक्षिप्त कृतित्व प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में सरिता फिड़ौदा ने अनेक संस्मरणों के माध्यम से बाबा साहेब के अछूते पहलुओं पर प्रकाश डाला। सुविधा जैन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन तथा संविधान निर्माण में अंबेडकर जी के महनीय कार्यों की झलकियां प्रस्तुत की।
इस अवसर पर विभाग में सभी छात्राओं एवं संकाय सदस्यों द्वारा ‘सामाजिक समरसता’ कार्यक्रम की आयोजना की गई जिसका प्रमुख उद्देश्य धर्म, जाति, क्षेत्रीयता पर आधारित भेदभाव को भुलाकर सामूहिक रूप से भोजन ग्रहण किया। इस कार्यक्रम द्वारा सभी भावी शिक्षकों को समानता, बंधुत्व एवं धर्मनिरपेक्षता के मूल्य अपनाने की प्रेरणा प्राप्त हुई। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. गिरधारीलाल शर्मा ने किया। कार्यक्रम में डाॅ. मनीष भट्नागर, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. गिरिराज भोजक, डाॅ. आभा सिंह, सुश्री मुकुल शर्मा आदि उपस्थित रहे।

Workshop Report "Connecting and Engaging Jain Institutions for a Better Tomorrow".






संस्थान में अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह आयोजित

विकास के लिये आवश्यक हैं शीतलता, गांभीर्य व पुरूषार्थ के गुण - मुनि जयकुमार

लाडनूँ, 31 मार्च 2018। मुनिश्री जयकुमार ने कहा है कि हर व्यक्ति विकास की दौड़ में लगा हुआ है, लेकिन विकास के पैमाने के बारे में भी सोचा जाना चाहिये। कोई आर्थिक विकास और कोई भौतिक विकास को ही विकास मान कर चल रहा है। इस तकनीक के युग में होने वाला यह विकास व्यक्ति का उध्र्वारोहण करता है या नहीं अथवा यह केवल शारीरिक व मानसिक शोषण का कारण ही बन रहा है। चेतना को पतन की ओर नहीं ले जाना चाहिये। स्वयं के विकास के लिये तय पैमाने के अनुसार व्यक्ति को शीतल, पराक्रमी और गंभीर होना चाहिये। वे यहां संस्थान के सेमिनार हाॅल में आयोजित अभिनन्दन एवं मंगलभावना समारोह में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्त करने को केवल जानकारी प्राप्त करने तक सीमित नहीं रखें। भीतर की प्रज्ञा का जागरूक बनना आवश्यक है। व्यक्ति चन्द्रमा की तरह से शीतल और शांत होना चाहिये। व्यक्ति भीतर से शीतल होगा व भावनायें शांत होंगी तो उसके सोचने की शक्ति दुगुनी हो जाती है। चिंतायें व तनाव विकास में बाधक बनती हैं। व्यक्ति सूर्य की भांति तेजस्विता, पराक्रमी और पुरूषार्थी होना चाहिये। अगर कोई पुरूषार्थ नहीं करता है तो वह स्वयं को धोखा देता है। इसके अलावा व्यक्ति को सागर की तरह से गहरा व गंभीर होना चाहिये। अगर भीतर गंभीरता नहीं होगी तो विश्वसनीयता नहीं रह सकती। मर्यादा, अनुशासन एवं गंभीरता हो तो तभी शिक्षा का महत्व होता है।
संस्थान के कुुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने इस अवसर पर मुनिश्री जयकुमार का स्वागत करते हुये बताया कि वे ऐसे तपस्वी व साधक संत हैं, जिन्होंने अपने साधना-काल में बरसों तक लेट कर शयन नहीं किया। वे आराम के लिये केवल बैठ कर ही विश्राम करते रहे हैं। उन्होंने मुनिश्री जयकुमार को सरल प्रवृति का बताया तथा कहा कि उनका यहां सेवा केन्द्र के व्यवस्थापक के रूप में लाडनूँ विराजना काफी आह्लादकारी है तथा यह विकास का कारण बनेगा। मुनि स्वस्तिक कुमार ने कहा कि संत किसी समाज से बंधकर नहीं चलते। समाज उनकी व्यवस्थायें करते हैं, लेकिन संत समस्त संसार के लिये होते हैं। मुनि मुदित कुमार व मुनि सुपारस कुमार ने व्यक्ति को सदैव गतिशील रहने की जरूरत बताई। कार्यक्रम में जैन विश्व भारती के ट्रस्टी भागचंद बरड़िया, जीवन मल मालू, निदेशक राजेन्द्र खटेड़, संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, प्रो. दामोदर शास्त्री, वित्ताधिकारी आरके जैन, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी आदि ने सम्बोधित किया तथा संतों को सदैव चलने वाला और सम्पूर्ण मानवता के लिये समर्पित बताया। कार्यक्रम में डाॅ. जसबीर सिंह, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, प्रगति भटनागर, सोनिका जैन, दीपक माथुर, नुपूर जैन आदि उपस्थित रहे।

Thursday 5 April 2018

आचार्य तुलसी श्रुत-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत अहिंसा की प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान आयोजित

अहिंसा को अपनाने से व्यक्ति, परिवार व समाज सुखी बनता है-डा. भारिल्ल

लाडनूँ, 5 अप्रेल 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अन्तर्गत महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में आचार्य तुलसी श्रुत-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत गुरूवार को महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में वर्तमान परिपे्रक्ष्य में अहिंसा की प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुख्य व्याख्यानकर्ता पं. टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जयपुर के निदेशक डाॅ. हुकमचंद भारिल्ल ने कहा कि राग आदि दोष हिंसा के मूल कारण होते हैं। भगवान महावीर ने कहा था कि आत्मा में रागादि की उत्पति का होना हिंसा है और रागादि का नहीं होना अहिंसा है। महावीर ने 2500 साल पहले अहिंसा का सिद्धांत दिया था, वह आज पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। ढाई हजार साल पहले पत्थरों से युद्ध होते थे, लेकिन आज जो आधुनिक अस्त्रों का इस्तेमाल होता है, वह अधिक घातक व हिसंक है। पत्थरों का घायल तो केवल अस्पताल पहुंचता है, लेकिन इन आयुधों से घायल व्यक्ति का तो जीवन ही समाप्त हो जाता है। आज निर्दयता एवं हिंसा की भावनायें बढी हैं। ऐसे में महावीर के सिद्धांतों पर चलने पर हम शांत हो सकते हैं। उन्होंने झगड़े और युद्ध के कारणों में जर, जोरू और जमीन को बताया तथा कहा कि इनके प्रति लोगों के अनुराग से झगड़ा पनपता है और इसके अलावा धर्मानुराग भी झगड़े और बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारण बनता है। काया, वाणी और मन से हिंसा होती है। इनमें काया की हिंसा तो सरकार रोकती है और वाणी की हिंसा समाज रोकता है, लेकिन मन की हिंसा को धर्म ही रोक सकता है। उन्होंने अहिंेसा को अमृत बताया तथा कहा कि इसे अपना कर व्यक्ति सुखी होगा और परिवार, समाज या देश द्वारा अहिंसा अपनाई जायेगी तो वे भी सुखी बन जायेंगे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. चैधरी ने ईशावास्योपनिषद, गीता, देसी कहावतों आदि के आधार पर जीवन-व्यवहार को समझाया तथा कहा कि विभिन्न भौतिक वस्तुओं का उपयोग करने में भी त्याग की भावना रहनी चाहिये एवं धन के प्रति आसक्ति नहीं रखनी चाहिये। उन्होंने निर्भय होने को अहिंसा का आधार बताया। चैधरी ने कहा कि सात्विक भोजन से सात्विक विचार आयेंगे तथा तामसिक भोजन से तामसिक प्रवृति उत्पन्न होगी। उन्होंने कहा कि आज तक जितने भी युद्ध हुये हैं, चाहे रामायण का युद्ध हो या महाभारत का अथवा अन्य युद्धों के पीछे कहीं न कहीं स्त्री रही है। उन्होंने व्यक्ति को अहिंसक रूप से रह कर मनुष्यता का पुजारी बनने का संदेश दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि हिंसा का प्रारम्भ तब होता है, जब हम किसी के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करें। भगवान महावीर ने परस्परता और सह-अस्तित्व को अहिंसा का आधार बताया था। उन्होंने शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष से जीवन विज्ञान को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता बताई, ताकि विद्यार्थी अपने जीवन को सर्वांगीण रूप से परिपूर्ण बना सकें। कुलपति ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय में हेंडीक्राफ्ट स्किल डेवलप का कोर्स भी विश्वविद्यालय में शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। शोधपीठ की निदेशक प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अंत में अपने सम्बोधन में अहिंसा को शाश्वत विषय बताया तथा कहा कि इसकी प्रसंगिकता सदैव ही बनी रहेगी। उन्होंने अहिंसा को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की आवश्यकता बताई।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि तेरापंथ महासभा जोधपुर के ट्रस्टी दिलीप सिंघवी ने कहा कि आज के युग में केवल अहिंसा से हीे आत्मिक शांति मिल सकती है। उन्होंने अपरिग्रह व समता के भाव को अहिंसा के लिये आवश्यक बताया। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय अजमेर के गणित विभागाध्यक्ष प्रो. सुशील कुमार बिस्सू ने कहा कि अहिंसा की प्रसंगिकता इस सृष्टि के रहने तक रहेगी। उन्होंने किसी भी कार्य या व्यवसाय के प्रति ईमानदार नहीं रहने एवं उसे पूरा नहीं करने को भी हिंसा बताया। संस्थान के पूर्व कुलपति प्रो. महावीर राज गेलड़ा ने पाश्चात्य संस्कृति के आगमन को अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि हिंसा व अहिंसा को अलग नहीं किया जा सकता है। जहां हिंसा होगी, वहां अहिंसा भी होगी और जहां अहिंसा होती है, वहां हिंसा का भी अस्तित्व होता है। इन्हें अलग करने के बजाये अहिंसा के अंश को बढाने का प्रयास करना चाहिये। कार्यक्रम की शुरूआत समणी वृंद के मंगलसंगान के साथ किया गया। अतिथियों का स्वागत शाॅल ओढा कर, स्मृति चिह्न प्रदान करके एवं साहित्य भेंट करके किया गया। व्याख्यान-माला में संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, शोध निदेशक प्रो. अनिल धर, प्रो. दामोदर शास्त्री, वित अधिकारी आर.के. जैन, प्रो. बी.एल. जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी, चांद कपूर सेठी, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. अनिता जैन, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, डाॅ. विकास शर्मा, सुनीता इंदौरिया आदि उपस्थित थे।